Saturday, April 4, 2020


CLEANING AND SANITIZATION IN INDIA Disinfection at Public Places for Coronavirus in India (COVID-19)





In this video one can know about the Lapse and Latches from the Public Health Department of Municipal Authority in disinfecting, Sanitizing and Cleaning the Public places such as Bus Stands, Parks, Vehicles and other such places where there are more chances of people touching objects - Blatant Violation of Guidelines issued by Ministry of Health & Family Welfare in accordance with WHO guidelines by Municipal Authorities.
To read guidelines of Ministry of Health and Family Welfare Directorate General of Health Services [Emergency Medical Relief] Novel Coronavirus Disease 2019 (COVID-19): Guidelines on rational use of Personal ProtectiveEquipment please click on this link below:

Monday, March 4, 2013

LOUD CAMPAIGNS FOR TENANT & SERVANT VERIFICATION BY DELHI POLICE

TO KNOW FACTS PLEASE READ THE NEWS PUBLISHED BY NAV BHARAT TIMES ON 22.02.2013

To know more, Click on the following Link of Nav Bharat Times:

http://navbharattimes.indiatimes.com//delhi/other-news--delhi/-----/articleshow/18616586.cms?intenttarget=no

More details to be posted soon. Keep watching. Thank you. 

Saturday, November 17, 2012

पेय-जल अभाव या न देने का स्वभाव ?? जनता जानना चाहती है। सरकार दे जवाब।

दिल्ली में पेय-जल किल्लत का खुला पोल 
तेजस्वी अस्तित्व फाउंडेशन ने सरकार पर मुआवज़े और नुक्सान के भरपाई की रखी मांग






बहुत छकाया तुमने अब तक। सोये हुए थे हम अब तक। 
अब हम शोषण नहीं सहेंगे। सरकार से हक़ लेकर रहेंगे।






Friday, December 23, 2011

दिल्ली सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट लाडली का सच

दिल्ली सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट
लाडली योजना का हुआ बंटाधार

लाडली का सच
लाडली को एक लाख रुपया - लाडली के लिए रह गया बनकर सपना
सोचने वाली बात ये है कि क्या लाडली सिर्फ उन बच्चियों के लिए है जो स्कूलों में पढ़ती हैं?
क्या लाडली योजना में बच्चियों का पंजीकरण सिर्फ सरकारी स्कूलों के माध्यम से ही होना होता है?
क्या जो बाकि बच्चियां गैर सरकारी स्कूलों में पढ़ती हैं वो लाडली योजना में लाभार्थी नहीं हो सकती हैं?
यदि बच्चियों का लाडली योजना में पंजीकरण सिर्फ सरकारी स्कूलों द्वारा ही करना तै है तो
क्यूँ कहा जाता है कि जिस बच्ची का पंजीकरण जन्म के वक्त होता है उसे अट्ठारह वर्ष की आयु में एक लाख रूपये मिलते हैं?
दूसरी बड़ी बात ये है कि जो बच्ची झुग्गी में रहती है और एम् सी डी के स्कूल में पढ़ती है क्या उसे लाडली योजना का लाभ नहीं मिलेगा?
स्कूलों में बच्चियों को ये बताकर टाल दिया जाता है कि लाडली में उसका पंजीकरण तब होगा जब वो दसवी कक्षा में पहुँच जाएगी
क्या ये सही है?
लाडली के फार्म जो महिला एवं बाल विकास विभाग के कार्यालय से मिलना चाहिए उसके लिए बच्ची / अभिभावक को ये कहकर भगा दिया जाता है कि फार्म क्षेत्रीय विधायक, निगम पार्षद और संसद के कार्यालय से मिलता है? क्या ये सही है?

फार्म यदि सीधे महिला एवं बल विकास विभाग के जिला कार्यालय में जमा करने लाया जाये तो ये कहकर वापिस भेज दिया जाता है कि जाकर अपने स्कूल में जमा कराओ - क्या ये सही है?

जिस बच्ची का जन्म दिल्ली में घर पर ही हुआ हो, और उसके माता पिता ने उसकी जन्म प्रमाण पत्र ना बनवाया हो तो क्या वो लाडली योजना की लाभार्थी नहीं होगी - क्या ये सही है?

जो बच्चियां गैर सरकारी स्कूलों में पढ़ती हैं उनका फार्म स्वीकृत नहीं किया जाता है - क्या ये सही है?

नियम के मुताबिक लाडली योजना के अंतर्गत सिर्फ वो ही बच्ची लाभान्वित होगी जो सिक्षा में लगातार बनी रहे और शिक्षा के लिए प्रेरित करने की बजाये उसका मनोबल तोडा जाता है - क्या ये सही है?

अधिकांश बच्चियां जिन्होंने लाडली पजीकरण के लिए फार्म भरे थे तीन चार साल बाद भी उन्हें पंजीकरण सम्बन्धी कोई जानकारी सरकार द्वारा नहीं डी गयी है - क्या ये सही है?

पूछ-ताछ करने गए तो जवाब देने वाला कोई नहीं मिलता, उल्टा कुछ बताने के लिए रिश्वत की मांग की जाति है - क्या ये सही है?

अट्ठारह वर्ष की आयु को प्राप्त करने पर जिन बच्चियों को लाडली योजना की रकम मिलनी थी उसका अभी तक कुछ आता-पता नहीं - क्या ये सही है?





Wednesday, December 14, 2011

दिल्ली सरकार की आंगनवाडी कार्यक्रम में जो दिखी गड़बड़ी

महिला एवं बाल विकास विभाग दिल्ली सरकार

के नामी कार्यक्रम आंगनवाडी में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी का पता लगा

देखिये टोटल टी वी की पड़ताल पर एक खास रिपोर्ट



Tuesday, December 6, 2011

जनता के पैसों का खुलेआम दुरूपयोग

जनता के पैसों को लग रहा चूना

जनता खामोश बनी मूक दर्शक

जनता के पैसों का दुरूपयोग रोकने में लगे हैं आज कल अस्तित्व फाऊनडेशन के संस्थापक डी एन श्रीवास्तव | उनका मानना है कि किसी भी तरह भ्रष्टाचार से निपटने में एक बड़ी सफलता हाथ लाग सकती है यदि हम जनता के पैसों के दुरूपयोग पर अंकुश लगा सकें | उनकी कोशिश है कि मुद्दा चाहे बड़ा हो या छोटा पर जनता के पैसों के सदुपयोग से हम न जाने कितने गरीबों कि परवरिश बेहतर ढंग से कर सकते हैं |

इन्हीं कोशिशों के दौरान आर टी आई के माध्यम से पता चला है कि दिल्ली नगर निगम और दिल्ली पुलिस द्वारा अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का निर्वाह पूरी इमानदारी से नहीं किया जाता है |

हाल ही में हुए एक तोड़ फोड़ कार्यवाही में सरकारी ज़मीन पर दिल्ली पुलिस के दक्षिण जिला और एम् सी डी के मध्य क्षेत्र में कोटला मुबारकपुर थानान्तर्गत स्थित सेवा नगर में लम्बे अरसे से बसे और चल रहे फल मंडी को नेस्त नाबूत कर दिया गया| दिल्ली नगर निगम मध्य क्षेत्र और दिल्ली पुलिस की मिली जुली इस कार्यवाही की असलियत का हुआ बड़ा खुलासा| आर टी आई आवेदनों द्वारा जो असलियत खुलकर सामने आई वो गंभीर रूप से चौका देने वाली थी| पता चला कि ये तोड़ फोड़ और कब्ज़ा हटाने का काम दिल्ली नगर निगम महज़ अपने फायदा और निजी स्वार्थ की खातिर करती है|

क्षेत्र के लोगों से बात कर पता चला कि इस मण्डी को दस सालों में दस से भी अधिक बार ढहाया जा चुका है| आपको जानकार हैरानी होगी कि कब्ज़ा हटा कर नगर निगम के अधिकारी और पुलिस अधिकारी तो वहां से अभी जा भी नहीं पाते हैं कि अगले ही क्षण फल की दुकाने फिर उसी अंदाज़ में जस की तस लगा दी जाती हैं| मानो जैसे पहले से ही कोई समझोता रहा हो एम् सी डी और दुकानदारों के बीच|

ये सच है या नहीं जरा नीचे दिए गया तथ्यों पर नज़र डालें आप खुद ब खुद समझ जायेंगे सच्चाई:
  1. ज़रा सोचिये - आपके माकन, दुकान या ज़मीन पर किसी का नाजायज़ कब्ज़ा हो गया हो
  2. और आपकी शिकायत पर अदालत या सरकर उसे कब्ज़े से हटा देती है
  3. और आपको आपके मकान का खाली कब्ज़ा दे देती है
  4. तो उस माकन कि निगरानी करना और इस बात को सुनिश्चित करना कि मकान पर दुबारा किसी का कब्ज़ा न हो जाये एब ज़िम्मेदारी तो ज़मीन या मकान के मालिक की बनती है| या फिर आपकी राय में किसी और की बनती है?
  5. और यदि दुबारा फिर से किसी का कब्ज़ा हो जाये तो गुनाहगार या दोशी कौन है?
इसी तथ्य को दिमाग में रखकर डी एन श्रीवास्तव ने एम् सी डी और पुलिस में लगाई आर टी आई| इसी आर टी आई में जो सूचना एम् सी डी और पुलिस से प्राप्त हुई उससे एक बड़े रहस्य का पर्दाफाश हुआ| बताया गया कि तोड़ फोड़ कि कार्यवाही महज़ इस कारण की जाती रही है ताकि तोड़ फोड़ कर कब्ज़े से बेदखल करने वाली एजेंसियों का अपना मतलब सिद्ध होता रहे और उनका निजी स्वार्थ पूरा होता रहे|

  1. वर्ना सोचो खाली कराई गयी ज़मीन पर दोबारा कब्ज़ा कैसे हो जाता है?
  2. क्या कब्ज़ा होते वक्त पुलिस को दिखता नहीं है?
  3. क्या कब्ज़ा होते ही उसे हटाया नहीं जा सकता है?
  4. क्या एम् सी डी के लोग सिर्फ ये देखने के लिए होते हैं कि कौन से मकान का लेंटर डाला जा रहा है जहाँ से उन्हें फायदा है?
  5. और ये भी सच है कि फल मंदी पिछले दस सालों में तोड़फोड़ के कारण कुल मिलाकर एक माह के लिए भी बंद न की गयी हो बल्कि बेधड़क तरीके से दुकाने चली ज़रूर हैं - तो क्यूँ न इन दुकानों को चलाने के लिए इज़ाज़त ही दे दी जाये? आखिर दुकाने तो चल ही रही हैं| कम से कम लोगों के निजी पाकेट / जेब भारी होने कि बजाये सरकारी तिजोरी भारी होगी| इससे जनता और सरकार दोनों ही का भला होगा|
सब जानते हैं कि कब्ज़ा हटाने में काफी पैसा खर्च होता है| काफी पुलिस बल का प्रयोग भी किया जाता है| ट्रक, बुलडोज़र, डम्पर, जे सी बी और मानव मजदूर कि ज़रुरत नही पड़ती है और इस्तेमाल में भी लाये जाते हैं| इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि पिछले 10 वर्षों में अनेकों बार इस मण्डी को हटाया गया| पर हैरानी कि बात ये है कि पुलिस और नगर निगम कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं| अपना मुँह खोलने से कन्नी काट रहे हैं| ज़रा नीचे दिए आर टी आई में दी गयी सूचना को ध्यान से पढ़ें:

आर टी आई एक्ट, 2005 में दिल्ली पुलिस से मांगी गयी सूचना

दिल्ली पुलिस द्वारा उपलब्ध कराई गयी सूचना



एम् सी दी से मांगी गयी सूचना


एम् सी दी द्वारा उपलब्ध कराई गयी सूचना

दी गयी आधी अधूरी सूचना पर प्रथम अपील में किया गया आदेश

नीचे दिए सवालों को पढ़िए, ज़रा सोचिये और बताइए :

मान लीजिये आप मकान मालिक हैं और
  1. यदि आपके मकान पर किसी का कब्ज़ा हो गया हो, और
  2. कब्ज़ा खाली करने के लिए आपने सरकार को या अदालत को शिकायत की हो, और फिर
  3. सरकार या अदालत के आदेश पर कब्ज़ा हटा दिया गया हो, तो फिर
दोबारा उस मकान पर किसी का कब्ज़ा न हो जाये, इस बात को सुनिश्चित करना
बतौर मकान मालिक आपका कर्त्तव्य है या फिर सरकार यानि अदालत और पुलिस इसकी ज़िम्मेदारी लेगी?

निश्चित तौर पर आपका ज़वाब होगा - मकान मालिक

अब जरा ऊपर दिया गया एम् सी डी द्वारा तर्क पढ़िए
एम् सी डी का कहना है कि सरकार की जिस ज़मीन पर से लाखों रूपये खर्च कर कब्ज़ा हटाया गया उस ज़मीन पर दोबारा किसीका कब्ज़ा न हो ये निगरानी दिल्ली पुलिस की ज़िम्मेदारी है|

वहीँ दूसरी ओर दिल्ली पुलिस का कहना है कि सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा न हो जाये इस बात कि निगरानी करना एम् सी डी कि ज़िम्मेदारी है |

लेकिन ज़रा सोचिये, क्या दिल्ली पुलिस और एम् सी डी की मिली भगत के बगैर क्या सरकारी ज़मीनों पर कब्ज़ा मुमकिन है? बल्कि यूँ कहें कि दिल्ली पुलिस और एम् सी डी के ही लोग सरकारी ज़मीनों पर अपने निजी स्वार्थ के वशीभूत कब्ज़ा होते देखकर भी चुप रहते हैं |

आप ऊपर दिए कागजातों को ध्यान से पढ़ें, ये कागजात हमें दिए गए हैं एम् सी डी द्वारा एक आर टी आई के ज़वाब में | आप खुद बी खुद सब समझ जायेंगे |

अभी कुछ आर टी आई में कुछ वाँछि कागजातों का इंतज़ार है जैसे ही हमें मिल जायेगा हम आपके फ़ौरन रख देंगे |

उल्लेखनीय है की जिस ज़मीन की बात हो रही है वो ज़मीन सरकार की है और उसपर फल-मण्डी बहुत लम्बे अरसे से चल रहा है | और जनता के मुताबिक इस फल मण्डी को पिछले लगभग दस सालों में दस बार उजाड़ा जा चूका है | जिसमे लाखो रुपयों का खर्च हो चूका है | पर आपको जानकर हैरत होगी कि कब्ज़ा हटाने के बाद कुछ ही घंटों में वही फल मण्डी दोबारा लगी वो भी पहले से कहीं अधिक सज संवर कर |

आज फल मण्डी पूरे शान ओ शौकत से चल रही है | क्या एम् सी डी और दिल्ली पुलिस को दिखाई नहीं दे रहा है?

यदि पिछले रिकार्ड को देखा जाये तो पिछले कई दशकों में ये मण्डी यदि दस बार तोड़ी गयी है तो सिर्फ दस घंटो के लिए ही नहीं लगी पर दस दशकों में सिर्फ दस घंटों को छोड़कर बाकि पूरे समय में शान से लगी रही है |

इससे दो मुख्या बातों का बड़ी सफाई से खुलासा होता है :
पहला तो ये कि फल मण्डी वालों की दिल्ली पुलिस और एम् सी डी से सांठ गांठ काफी अच्छी है , और
दूसरा ये कि मण्डी हटी कुछ ही समय के लिए और लगी हमेश रही |

तो क्यों न इस मण्डी को वैध करार दे दिया जाये? इससे फिर दो फायदे हैं:

पहला ये कि साल में दो बार इसे हटाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी, और
दूसरा ये कि सरकार को भी लाइसेंस फीस के बहाने इन दुकानों से कुछ रेवेन्यु आने लग जायेगा |
जनता के पैसों का दुरूपयोग जो इस मण्डी को हटाने में हो रहा है वो बंद होगा और सरकार के कोष में धन लाभ |

क्यों कुछ गलत कहा हमने???? .

उठो, जागो - हक़ और न्याय के लिए करो धर्म युद्ध की तैयारी|

Friday, November 11, 2011

SEE HOW PATIENTS BELONGING TO EWS CATEGORY ARE REFUSED TREATMENT BY PRIVATE 5 STAR HOSPITALS AS WELL AS GOVT. HOSPITALS.

DEBATE WAS TELECAST AT DILLI AAJTAK AT 12:30PM TODAY.

VIDEO TO BE UPLOADED SOON.

SORRY FOR INCONVENIENCE,

TEAM ASTITVA

Monday, October 24, 2011

भारत में दीपावली या फिर चीन की कामयाबी का जशन


दोस्तों, यदि हम और आप चाहें तो
अपने भारत में एक बार फिर से सोने की चिडियों का बसेरा हो सकता है |
अपने देश में फिर से दूध की नदीयाँ बहने लग सकती हैं, और
एक बार फिर से लोग अपने घरों में त|ले लगाना छोड़ सकते हैं |
पर इसके लिए सोच बदलनी होगी, हम सब एक हैं समझना होगा |

Wednesday, October 19, 2011

सरकार तुम्हारी जय होवे !!! शिक्षा के अधिकार की एक बार फिर उडाई गयी धज्जियाँ - बच्चों को किया शिक्षा से महरूम | विद्यालय हुआ बंद, वृद्धाश्रम लगा चलने | माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश की भी की गयी अवहेलना

जंगपुरा स्थित दिल्ली नगर निगम प्राथमिक विद्यालय के गेट पर सन 2007 में टला जड़ दिया गया | आसपास के लोगों ने बताया की इस स्कूल में अधिकांश बच्चे गरीब घरों से हुआ करते थे | तकलीफ तब हुई जब लोगों ने ये बताया कि उनमे से कुछ बच्चे अब बल मजदूरी कर रहे हैं |

आर टी आई एक्टिविस्ट डी एन श्रीवास्तवा ने फ़ौरन लगाई सूचना के अधिकार के तहत दरख्वास्त जिसमे कई अहम् जानकारियां मिलीं |

दिल्ली नगर निगम ने दरख्वास्त में मांगी गयी जानकारी देते हुए बताया
  1. जंगपुरा में चल रहे स्कूल को 2007 में सारे काले खान स्कूल के साथ मिला दिया गया था |
  2. कारण में शहरी चेत्र के (Asstt. Education Officer, City Zone, MCD) सहायक शिक्षा अधिकारी ने अपने पत्र संख्या D/374/AEO/CZ दिनांक 7 मई 2002 द्वारा यह दलील दी "जंगपुरा विद्यालय के भवन का निर्माण कार्य शीघ्र आरम्भ होने वाला है अतः दोनों पालियों के मुख्य अध्यापकों को निर्देशित किया जाता है कि अपने विद्यालयों का समस्त सामान सारे काले खान विद्यालय में स्थानांतरित करें"
  3. आदेश के अनुपालन के लिए तत्कालीन मुख्य अध्यापिका श्रीमती सुख वर्षा शुक्ला का स्थानांतरण 02.12.2004 को तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया गया
  4. हैरानी कि बात ये है कि हालाँकि आर टी आई के मांगी गयी जानकारी में दूसरी पली के मुख्य अध्यापक के सन्दर्भ में कोई खुलासा नहीं किया गया है पर श्रीमती सुख्वार्षा शुक्ला के पत्र दिनांक 27.07.2005 पर यदि गौर करें तो पाएंगे कि एक मुख्य अध्यापिका श्रीमती सुख्वार्षा शुक्ला के पली में ही 413 बच्चे तो तब थे जब स्कूल को जंगपुरा से सारे काले खान शिफ्ट हुए लगभग ३-4 वर्ष हो चुके थे और अधिकांश बच्चों ने पढाई से नाता तोड़ लिया था | यानि कुल मिलाकर कोई कुछ भी कहे, पर यदि ये आंकड़ा भी सही मन लिया जाये तो भी औसतन लगभग एक हज़ार बच्चे जंगपुरा के उस विद्यालय में अवश्य ही पढ़ते रहे होंगे |
  5. श्रीमती सुख वर्षा शुक्ला ने अपने उपरोक्त पत्र में ये भी साफ़ कर दिया था कि सारे काले खान के स्कूल में 6 कमरों में 413 बच्चे पढ़ते हैं पर ऐसा लगता है दिल्ली नगर निगम को इस बात से कुछ लेना देना नहीं था |


NEWS BROACST ON TOTAL TV - 19.10.2011

हैरत कि बात ये है कि RTI में दिल्ली नगर निगम शहरी छेत्र के शिक्षा उपनिदेशक ने एक महत्वपूर्ण खुलासा और भी किया - कि दिल्ली नगर निगम के शिक्षा संस्थानों पर जो भी कार्यवाही या आदेश उनका शिक्षा विभाग करता है उसके सन्दर्भ में खुद शिक्षा विभाग को ही जानकारी नहीं होती है | मसलन विद्यालय भवन शिक्षा विभाग का, विद्यालय चला रहा शिक्षा विभाग, पर कब विद्यालय को शिक्षा विभाग बंद कर देता है, कब विद्यालय भवन को किसी और को सौंप देता है इस बात कि जानकारी शिक्षा उपनिदेशक को नहीं है - क्या आपको लगता है ये मुमकिन है?


Monday, September 26, 2011

सरकारी अस्पतालों की बदहाली


JANPATH PART - I


JANPATH PART-II



JANPATH PART-III


JANPTH PART-IV


JANPATH PART-V

Friday, August 12, 2011