Monday, October 19, 2009


जल व्यवस्था के लिए कोटला मुबारकपुर वासियों का
श्री डी एन श्रीवास्तवा को हार्दिक धन्यवाद्
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Saturday, October 3, 2009







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आम आदमी का अस्तित्व



डी एन श्रीवास्तव
संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष
अस्तित्व






आज आम आदमी का न तो कोई वजूद है, न कोई कीमत और इसी लिए आम आदमी कारण कोई पहचान है ही नहीं. इसी कारन आम आदमी का अस्तित्व बहुत तेजी के साथ धूमिल पड़ता जा रहा है. यदि अब भी हम नहीं चेते, नहीं जागे, नहीं समझे तो वो समय ज्यादा दूर नहीं जब हमारा अस्तित्व मिट्टी में मिलकर नष्ट हो जायेगा.

आम आदमी आज केवल कीड़े मकोड़ों की तरह रह गया है. जिस प्रकार सड़क पर चल रहे आदमी के पैरों के नीचे कितने ही कीड़े पिचकर दबकर मर जाते हैं कभी किसीने इस बात की सुध नहीं ली. ठीक उसी प्रकार आम आदमी भी नित्य प्रतिदिन किसी न किसी कारणवश अपनी जान गवां रहा है, चाहे उसका कत्ल हो रहा हो, या किसी घातक बीमारी की इलाज के अभाव में या फिर भूखमरी के कारण.

कारण चाहे कुछ भी हो पर कौन सुध ले रहा है आज आम आदमी के दर्द की?

आम आदमी की तुलना कीड़े से? ये बात हमें भी हज़म नहीं हुई. परन्तु हमने हार नहीं मानी. गहन चिंतन मनन करने पर लगा कि बात में दम है. अब आप भी यदि इस बात पर गौर करें तो पाएंगे कि यह कहना कि आम आदमी आज महज़ कीड़े मकोड़ों की तरह रह गया है ये बात अक्षरशः सत्य है.

तिलचट्टा - जिसे हम कोकरोच के नाम से भी जानते हैं, उसकी जिंदगी कितनी दैनीय है. गटर की सडांध में उसे रहना पड़ता है , सडांध ही खाना पड़ता है, सडांध में ही सारी जिंदगी बितानी पड़ती है. कहते हैं की जब इश्वर तिलचट्टे की उत्पत्ति कर रहा था तब एक काल्पनिक संवाद जो इश्वर और तिलचट्टे के बीच हुई उसपर ज़रा ध्यान दें :

इश्वर: बेटा तिलचट्टे, पैदा तो मैं तुझे कर रहा हूँ पर एक बात समझ ले. तुझे जीने का अधिकार नहीं है.

तिलचट्टा: भगवन, जब जीने का हक़ ही नहीं है तो पैदा ही क्यूँ करते हो?

इश्वर: पैदा तो करना ही होगा, ऐसा विदित है. और तुझे गटर की सडांध में रहना पड़ेगा, सडांध ही खाना पडेगा, सडांध में ही सारी जिंदगी बितानी पड़ेगी.

तिलचट्टा: भगवन, यदि ऐसी बात है तो हमें पैदा करके फ़ौरन मृत्यु को प्राप्त करा दो ताकि
हमें ऐसी दर्दनाक ज़िन्दगी न जीनी पड़े.

इश्वर: एक मजबूरी और भी है कि मरने तुझे दिया नहीं जायेगा.

तिलचट्टा : तो फिर आप ही बताएं कि हम कैसे अपनी जिंदगी बिताएं.

इश्वर: ऐसी ज़िन्दगी जीने के लिए सहनशीलता की अधिकता होनी चाहिए. और सहनशील बनाने के लिए ज़रूरी है कि खून में गर्मी न हो. और खून की गर्मी हटाने के लिए ज़रूरी है खून का रंग लाल न हो. इस कारण मैं तुम्हारे खून का रंग सफ़ेद कर देता हूँ. इससे तुम्हें दो फायदे होंगे. एक - तुम में ज़रुरत से अधिक सहनशीलता आएगी और दूसरा - तुम्हारी मृत्यु जबतक पैरों तले कुचलकर न मारा जाये तबतक नहीं होगी.

तबसे तिलचट्टा एक अत्यंत सहनशील कीड़े माना जाता रहा है. और आसानी से उसकी मृत्यु नहीं होती है.

आज ठीक ऐसी ही ज़िन्दगी आम आदमी की हो गयी है. सडांध में रहना पड़ता है, सडांध ही खाना पड़ता है, सडांध में ही सारी जिंदगी बितानी पड़ती है आम आदमी को. आम आदमी को न तो जीने का हक़ है और न ही उसे मरने दिया जाता है. भूख से बेहाल तडफता आम आदमी जब खुदकुशी करने चलता है तो फ़ौरन कानून के पंजे उसे धर दबोचते हैं और वो आदमी खुदकुशी करने की कोशिश के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया जाता है. अब इस विडम्बना को देखिये. भूख मिटाने को रोटी मांगने पर पुलिस उससे कहती है की रोटी देने का अधिकार उसके पास नहीं है.पर मरने की कोशिश करने पर उसे रोकना कानून है बेशक यह कोशिश भूखमरी के कारणों से ही क्यूँ न हो.

ठीक कीड़े मकोड़ों की तरह ही आम आदमी की सुनने वाला भी कोई नहीं है.
तो बताईये, आप को आम आदमी की ज़िन्दगी क्या कीडे मकोडों की सी नहीं लगती है. क्या फर्क लगा आपको इन दोनों जिंदगियों में? यदि आपका मार्ग दर्शन हमें मिले तो शायद हमें और भी कुछ समझ आये.

ज़रा सोचिये, ऐसा आखिर क्यूँ? क्यूँ कि आम आदमी का खून भी जैसे सफ़ेद हो गया है. हर हर ज़ुल्म और हर अत्याचार सहने कि आदत पद गयी हाय. कुछ भी हो एक बात हमें नहीं भूलना चाहिए कि तिलचट्टे का खून तो भगवान ने सफ़ेद किया था परन्तु आम आदमी ने तो अपना खून स्वयं ही सफ़ेद कर लिया. इस लिए मेरे प्यारे देशवासियों अब वक़्त आ गया है

उठो, जागो, खुद को पहचानो,
अपने हक़ अधिकारों को जानो




Friday, October 2, 2009



अस्तित्व रक्षा हेतु


हक़ और न्याय के ज़ंग की शुरुआत


आज देश में आम आदमी की लड़ाई राजनीती से नहीं है , लडाई सरकारों की नहीं , अच्छे बुरे नेता की भी नहीं है . लडाई पार्टियों की नहीं , लड़ाई सत्ता की नहीं और न ही लडाई कुर्सी की है . सही मायने में आज लडाई तो है हक़ और न्याय को हासिल करने की . आज लडाई है अशिक्षितों को शिक्षित बनाने की . लडाई है अन्याय से . लडाई है आम आदमी को गुमराही से बचाने की . लडाई है रोटी और कपडे की , आम आदमी के लिए एक छत की . लडाई है आर्थिक आज़ादी की . लडाई है समाज में बढ़ते अराजकता से , समाज में फैले भ्रष्टाचार से , समाज में पंख फैलाते उस द्वेष से जहाँ इंसान अपने ही खून का प्यासा हो रहा है . लडाई है उस आतंकवाद से जिसने असंख्य माताओं के की गोअद सूनी कर डालीं , असंख्य अबलाओं को विधवा बना दिया , असंख्य बच्चों को अनाथ बना दिया पर हमारे तथाकथित नेता सिर्फ एक दुसरे नेताओं के मत्थे दोष मढ़कर अपना पल्ला झाड़ कर रह गए.

ज़रा सोचिये , क्या एक पार्टी दुसरे पार्टी को दोषी ठहराकर आम आदमी को वो सब दे सकती है जो उससे छिनता जा रहा है ? कदापि नहीं .


वास्तव में एक नेता जो कुर्सी पर बैठ चूका है उसे न तो किसी प्रकार की असुविधा ही है और न ही कोई परेशानी. उनकी तो हर ज़रुरत, चाहे वो छोटी हो या बड़ी पल भर में पूरी हो जाती है बेशक वो उसके हक़ के अतिरिक्त ही क्यों न हो. वहीँ अपने हक़ की भीख मांगता रह जाता है आम आदमी और अपने हक़ से भी महरूम रह जाता है.

क्या आपने कभी सोचा है की ऐसा आखिर क्यों होता है? इसका मूल कारन आम आदमी ही है.


अनंत काल से इस देश का विभाजन होता चला आ रहा है. कभी धर्म और मज़हब के नाम पर तो कभी जाती के नाम पर. कभी बिरादरी के नाम पर. फिर कभी अमीर गरीब के नाम पर, तो कभी ऊंच नीच के नाम पर कभी भाषा तो कभी प्रान्त के नाम पर. पर देश का सबसे बड़ा विभाजन जो मुझे लगता है वो हुआ पहचान के नाम पर. हमारा देश दो बड़े हिस्सों में बाँट गया. एक वो वर्ग बना जिनकी अपनी एक पहचान थी अपना एक वजूद था, अपनी कोई अहमियत थी और दूसरा वो वर्ग बना जिसकी कोई पहचान थी ही नहीं और न ही उनकी कोई अहमियत ही थी. इस आम आदमी का कोई वजूद था ही नहीं. आप स्वयं देखें और समझने की कोशिश करें. क्या आपको ऐसा नहीं लगता है की आज हमारे देश में जिस वर्ग की पहचान है उस वर्ग के लोगों को हम नेता कह सकते हैं. वहीँ आम आदमी की कोई पहचान नहीं ही. उसका कोई वजूद नहीं है. उसकी कोई अहमियत नहीं है. कहने का मकसद ये है की आम आदमी का कोई आज कोई अस्तित्व नहीं है.