Friday, December 23, 2011

दिल्ली सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट लाडली का सच

दिल्ली सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट
लाडली योजना का हुआ बंटाधार

लाडली का सच
लाडली को एक लाख रुपया - लाडली के लिए रह गया बनकर सपना
सोचने वाली बात ये है कि क्या लाडली सिर्फ उन बच्चियों के लिए है जो स्कूलों में पढ़ती हैं?
क्या लाडली योजना में बच्चियों का पंजीकरण सिर्फ सरकारी स्कूलों के माध्यम से ही होना होता है?
क्या जो बाकि बच्चियां गैर सरकारी स्कूलों में पढ़ती हैं वो लाडली योजना में लाभार्थी नहीं हो सकती हैं?
यदि बच्चियों का लाडली योजना में पंजीकरण सिर्फ सरकारी स्कूलों द्वारा ही करना तै है तो
क्यूँ कहा जाता है कि जिस बच्ची का पंजीकरण जन्म के वक्त होता है उसे अट्ठारह वर्ष की आयु में एक लाख रूपये मिलते हैं?
दूसरी बड़ी बात ये है कि जो बच्ची झुग्गी में रहती है और एम् सी डी के स्कूल में पढ़ती है क्या उसे लाडली योजना का लाभ नहीं मिलेगा?
स्कूलों में बच्चियों को ये बताकर टाल दिया जाता है कि लाडली में उसका पंजीकरण तब होगा जब वो दसवी कक्षा में पहुँच जाएगी
क्या ये सही है?
लाडली के फार्म जो महिला एवं बाल विकास विभाग के कार्यालय से मिलना चाहिए उसके लिए बच्ची / अभिभावक को ये कहकर भगा दिया जाता है कि फार्म क्षेत्रीय विधायक, निगम पार्षद और संसद के कार्यालय से मिलता है? क्या ये सही है?

फार्म यदि सीधे महिला एवं बल विकास विभाग के जिला कार्यालय में जमा करने लाया जाये तो ये कहकर वापिस भेज दिया जाता है कि जाकर अपने स्कूल में जमा कराओ - क्या ये सही है?

जिस बच्ची का जन्म दिल्ली में घर पर ही हुआ हो, और उसके माता पिता ने उसकी जन्म प्रमाण पत्र ना बनवाया हो तो क्या वो लाडली योजना की लाभार्थी नहीं होगी - क्या ये सही है?

जो बच्चियां गैर सरकारी स्कूलों में पढ़ती हैं उनका फार्म स्वीकृत नहीं किया जाता है - क्या ये सही है?

नियम के मुताबिक लाडली योजना के अंतर्गत सिर्फ वो ही बच्ची लाभान्वित होगी जो सिक्षा में लगातार बनी रहे और शिक्षा के लिए प्रेरित करने की बजाये उसका मनोबल तोडा जाता है - क्या ये सही है?

अधिकांश बच्चियां जिन्होंने लाडली पजीकरण के लिए फार्म भरे थे तीन चार साल बाद भी उन्हें पंजीकरण सम्बन्धी कोई जानकारी सरकार द्वारा नहीं डी गयी है - क्या ये सही है?

पूछ-ताछ करने गए तो जवाब देने वाला कोई नहीं मिलता, उल्टा कुछ बताने के लिए रिश्वत की मांग की जाति है - क्या ये सही है?

अट्ठारह वर्ष की आयु को प्राप्त करने पर जिन बच्चियों को लाडली योजना की रकम मिलनी थी उसका अभी तक कुछ आता-पता नहीं - क्या ये सही है?





Wednesday, December 14, 2011

दिल्ली सरकार की आंगनवाडी कार्यक्रम में जो दिखी गड़बड़ी

महिला एवं बाल विकास विभाग दिल्ली सरकार

के नामी कार्यक्रम आंगनवाडी में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी का पता लगा

देखिये टोटल टी वी की पड़ताल पर एक खास रिपोर्ट



Tuesday, December 6, 2011

जनता के पैसों का खुलेआम दुरूपयोग

जनता के पैसों को लग रहा चूना

जनता खामोश बनी मूक दर्शक

जनता के पैसों का दुरूपयोग रोकने में लगे हैं आज कल अस्तित्व फाऊनडेशन के संस्थापक डी एन श्रीवास्तव | उनका मानना है कि किसी भी तरह भ्रष्टाचार से निपटने में एक बड़ी सफलता हाथ लाग सकती है यदि हम जनता के पैसों के दुरूपयोग पर अंकुश लगा सकें | उनकी कोशिश है कि मुद्दा चाहे बड़ा हो या छोटा पर जनता के पैसों के सदुपयोग से हम न जाने कितने गरीबों कि परवरिश बेहतर ढंग से कर सकते हैं |

इन्हीं कोशिशों के दौरान आर टी आई के माध्यम से पता चला है कि दिल्ली नगर निगम और दिल्ली पुलिस द्वारा अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का निर्वाह पूरी इमानदारी से नहीं किया जाता है |

हाल ही में हुए एक तोड़ फोड़ कार्यवाही में सरकारी ज़मीन पर दिल्ली पुलिस के दक्षिण जिला और एम् सी डी के मध्य क्षेत्र में कोटला मुबारकपुर थानान्तर्गत स्थित सेवा नगर में लम्बे अरसे से बसे और चल रहे फल मंडी को नेस्त नाबूत कर दिया गया| दिल्ली नगर निगम मध्य क्षेत्र और दिल्ली पुलिस की मिली जुली इस कार्यवाही की असलियत का हुआ बड़ा खुलासा| आर टी आई आवेदनों द्वारा जो असलियत खुलकर सामने आई वो गंभीर रूप से चौका देने वाली थी| पता चला कि ये तोड़ फोड़ और कब्ज़ा हटाने का काम दिल्ली नगर निगम महज़ अपने फायदा और निजी स्वार्थ की खातिर करती है|

क्षेत्र के लोगों से बात कर पता चला कि इस मण्डी को दस सालों में दस से भी अधिक बार ढहाया जा चुका है| आपको जानकार हैरानी होगी कि कब्ज़ा हटा कर नगर निगम के अधिकारी और पुलिस अधिकारी तो वहां से अभी जा भी नहीं पाते हैं कि अगले ही क्षण फल की दुकाने फिर उसी अंदाज़ में जस की तस लगा दी जाती हैं| मानो जैसे पहले से ही कोई समझोता रहा हो एम् सी डी और दुकानदारों के बीच|

ये सच है या नहीं जरा नीचे दिए गया तथ्यों पर नज़र डालें आप खुद ब खुद समझ जायेंगे सच्चाई:
  1. ज़रा सोचिये - आपके माकन, दुकान या ज़मीन पर किसी का नाजायज़ कब्ज़ा हो गया हो
  2. और आपकी शिकायत पर अदालत या सरकर उसे कब्ज़े से हटा देती है
  3. और आपको आपके मकान का खाली कब्ज़ा दे देती है
  4. तो उस माकन कि निगरानी करना और इस बात को सुनिश्चित करना कि मकान पर दुबारा किसी का कब्ज़ा न हो जाये एब ज़िम्मेदारी तो ज़मीन या मकान के मालिक की बनती है| या फिर आपकी राय में किसी और की बनती है?
  5. और यदि दुबारा फिर से किसी का कब्ज़ा हो जाये तो गुनाहगार या दोशी कौन है?
इसी तथ्य को दिमाग में रखकर डी एन श्रीवास्तव ने एम् सी डी और पुलिस में लगाई आर टी आई| इसी आर टी आई में जो सूचना एम् सी डी और पुलिस से प्राप्त हुई उससे एक बड़े रहस्य का पर्दाफाश हुआ| बताया गया कि तोड़ फोड़ कि कार्यवाही महज़ इस कारण की जाती रही है ताकि तोड़ फोड़ कर कब्ज़े से बेदखल करने वाली एजेंसियों का अपना मतलब सिद्ध होता रहे और उनका निजी स्वार्थ पूरा होता रहे|

  1. वर्ना सोचो खाली कराई गयी ज़मीन पर दोबारा कब्ज़ा कैसे हो जाता है?
  2. क्या कब्ज़ा होते वक्त पुलिस को दिखता नहीं है?
  3. क्या कब्ज़ा होते ही उसे हटाया नहीं जा सकता है?
  4. क्या एम् सी डी के लोग सिर्फ ये देखने के लिए होते हैं कि कौन से मकान का लेंटर डाला जा रहा है जहाँ से उन्हें फायदा है?
  5. और ये भी सच है कि फल मंदी पिछले दस सालों में तोड़फोड़ के कारण कुल मिलाकर एक माह के लिए भी बंद न की गयी हो बल्कि बेधड़क तरीके से दुकाने चली ज़रूर हैं - तो क्यूँ न इन दुकानों को चलाने के लिए इज़ाज़त ही दे दी जाये? आखिर दुकाने तो चल ही रही हैं| कम से कम लोगों के निजी पाकेट / जेब भारी होने कि बजाये सरकारी तिजोरी भारी होगी| इससे जनता और सरकार दोनों ही का भला होगा|
सब जानते हैं कि कब्ज़ा हटाने में काफी पैसा खर्च होता है| काफी पुलिस बल का प्रयोग भी किया जाता है| ट्रक, बुलडोज़र, डम्पर, जे सी बी और मानव मजदूर कि ज़रुरत नही पड़ती है और इस्तेमाल में भी लाये जाते हैं| इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि पिछले 10 वर्षों में अनेकों बार इस मण्डी को हटाया गया| पर हैरानी कि बात ये है कि पुलिस और नगर निगम कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं| अपना मुँह खोलने से कन्नी काट रहे हैं| ज़रा नीचे दिए आर टी आई में दी गयी सूचना को ध्यान से पढ़ें:

आर टी आई एक्ट, 2005 में दिल्ली पुलिस से मांगी गयी सूचना

दिल्ली पुलिस द्वारा उपलब्ध कराई गयी सूचना



एम् सी दी से मांगी गयी सूचना


एम् सी दी द्वारा उपलब्ध कराई गयी सूचना

दी गयी आधी अधूरी सूचना पर प्रथम अपील में किया गया आदेश

नीचे दिए सवालों को पढ़िए, ज़रा सोचिये और बताइए :

मान लीजिये आप मकान मालिक हैं और
  1. यदि आपके मकान पर किसी का कब्ज़ा हो गया हो, और
  2. कब्ज़ा खाली करने के लिए आपने सरकार को या अदालत को शिकायत की हो, और फिर
  3. सरकार या अदालत के आदेश पर कब्ज़ा हटा दिया गया हो, तो फिर
दोबारा उस मकान पर किसी का कब्ज़ा न हो जाये, इस बात को सुनिश्चित करना
बतौर मकान मालिक आपका कर्त्तव्य है या फिर सरकार यानि अदालत और पुलिस इसकी ज़िम्मेदारी लेगी?

निश्चित तौर पर आपका ज़वाब होगा - मकान मालिक

अब जरा ऊपर दिया गया एम् सी डी द्वारा तर्क पढ़िए
एम् सी डी का कहना है कि सरकार की जिस ज़मीन पर से लाखों रूपये खर्च कर कब्ज़ा हटाया गया उस ज़मीन पर दोबारा किसीका कब्ज़ा न हो ये निगरानी दिल्ली पुलिस की ज़िम्मेदारी है|

वहीँ दूसरी ओर दिल्ली पुलिस का कहना है कि सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा न हो जाये इस बात कि निगरानी करना एम् सी डी कि ज़िम्मेदारी है |

लेकिन ज़रा सोचिये, क्या दिल्ली पुलिस और एम् सी डी की मिली भगत के बगैर क्या सरकारी ज़मीनों पर कब्ज़ा मुमकिन है? बल्कि यूँ कहें कि दिल्ली पुलिस और एम् सी डी के ही लोग सरकारी ज़मीनों पर अपने निजी स्वार्थ के वशीभूत कब्ज़ा होते देखकर भी चुप रहते हैं |

आप ऊपर दिए कागजातों को ध्यान से पढ़ें, ये कागजात हमें दिए गए हैं एम् सी डी द्वारा एक आर टी आई के ज़वाब में | आप खुद बी खुद सब समझ जायेंगे |

अभी कुछ आर टी आई में कुछ वाँछि कागजातों का इंतज़ार है जैसे ही हमें मिल जायेगा हम आपके फ़ौरन रख देंगे |

उल्लेखनीय है की जिस ज़मीन की बात हो रही है वो ज़मीन सरकार की है और उसपर फल-मण्डी बहुत लम्बे अरसे से चल रहा है | और जनता के मुताबिक इस फल मण्डी को पिछले लगभग दस सालों में दस बार उजाड़ा जा चूका है | जिसमे लाखो रुपयों का खर्च हो चूका है | पर आपको जानकर हैरत होगी कि कब्ज़ा हटाने के बाद कुछ ही घंटों में वही फल मण्डी दोबारा लगी वो भी पहले से कहीं अधिक सज संवर कर |

आज फल मण्डी पूरे शान ओ शौकत से चल रही है | क्या एम् सी डी और दिल्ली पुलिस को दिखाई नहीं दे रहा है?

यदि पिछले रिकार्ड को देखा जाये तो पिछले कई दशकों में ये मण्डी यदि दस बार तोड़ी गयी है तो सिर्फ दस घंटो के लिए ही नहीं लगी पर दस दशकों में सिर्फ दस घंटों को छोड़कर बाकि पूरे समय में शान से लगी रही है |

इससे दो मुख्या बातों का बड़ी सफाई से खुलासा होता है :
पहला तो ये कि फल मण्डी वालों की दिल्ली पुलिस और एम् सी डी से सांठ गांठ काफी अच्छी है , और
दूसरा ये कि मण्डी हटी कुछ ही समय के लिए और लगी हमेश रही |

तो क्यों न इस मण्डी को वैध करार दे दिया जाये? इससे फिर दो फायदे हैं:

पहला ये कि साल में दो बार इसे हटाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी, और
दूसरा ये कि सरकार को भी लाइसेंस फीस के बहाने इन दुकानों से कुछ रेवेन्यु आने लग जायेगा |
जनता के पैसों का दुरूपयोग जो इस मण्डी को हटाने में हो रहा है वो बंद होगा और सरकार के कोष में धन लाभ |

क्यों कुछ गलत कहा हमने???? .

उठो, जागो - हक़ और न्याय के लिए करो धर्म युद्ध की तैयारी|

Friday, November 11, 2011

SEE HOW PATIENTS BELONGING TO EWS CATEGORY ARE REFUSED TREATMENT BY PRIVATE 5 STAR HOSPITALS AS WELL AS GOVT. HOSPITALS.

DEBATE WAS TELECAST AT DILLI AAJTAK AT 12:30PM TODAY.

VIDEO TO BE UPLOADED SOON.

SORRY FOR INCONVENIENCE,

TEAM ASTITVA

Monday, October 24, 2011

भारत में दीपावली या फिर चीन की कामयाबी का जशन


दोस्तों, यदि हम और आप चाहें तो
अपने भारत में एक बार फिर से सोने की चिडियों का बसेरा हो सकता है |
अपने देश में फिर से दूध की नदीयाँ बहने लग सकती हैं, और
एक बार फिर से लोग अपने घरों में त|ले लगाना छोड़ सकते हैं |
पर इसके लिए सोच बदलनी होगी, हम सब एक हैं समझना होगा |

Wednesday, October 19, 2011

सरकार तुम्हारी जय होवे !!! शिक्षा के अधिकार की एक बार फिर उडाई गयी धज्जियाँ - बच्चों को किया शिक्षा से महरूम | विद्यालय हुआ बंद, वृद्धाश्रम लगा चलने | माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश की भी की गयी अवहेलना

जंगपुरा स्थित दिल्ली नगर निगम प्राथमिक विद्यालय के गेट पर सन 2007 में टला जड़ दिया गया | आसपास के लोगों ने बताया की इस स्कूल में अधिकांश बच्चे गरीब घरों से हुआ करते थे | तकलीफ तब हुई जब लोगों ने ये बताया कि उनमे से कुछ बच्चे अब बल मजदूरी कर रहे हैं |

आर टी आई एक्टिविस्ट डी एन श्रीवास्तवा ने फ़ौरन लगाई सूचना के अधिकार के तहत दरख्वास्त जिसमे कई अहम् जानकारियां मिलीं |

दिल्ली नगर निगम ने दरख्वास्त में मांगी गयी जानकारी देते हुए बताया
  1. जंगपुरा में चल रहे स्कूल को 2007 में सारे काले खान स्कूल के साथ मिला दिया गया था |
  2. कारण में शहरी चेत्र के (Asstt. Education Officer, City Zone, MCD) सहायक शिक्षा अधिकारी ने अपने पत्र संख्या D/374/AEO/CZ दिनांक 7 मई 2002 द्वारा यह दलील दी "जंगपुरा विद्यालय के भवन का निर्माण कार्य शीघ्र आरम्भ होने वाला है अतः दोनों पालियों के मुख्य अध्यापकों को निर्देशित किया जाता है कि अपने विद्यालयों का समस्त सामान सारे काले खान विद्यालय में स्थानांतरित करें"
  3. आदेश के अनुपालन के लिए तत्कालीन मुख्य अध्यापिका श्रीमती सुख वर्षा शुक्ला का स्थानांतरण 02.12.2004 को तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया गया
  4. हैरानी कि बात ये है कि हालाँकि आर टी आई के मांगी गयी जानकारी में दूसरी पली के मुख्य अध्यापक के सन्दर्भ में कोई खुलासा नहीं किया गया है पर श्रीमती सुख्वार्षा शुक्ला के पत्र दिनांक 27.07.2005 पर यदि गौर करें तो पाएंगे कि एक मुख्य अध्यापिका श्रीमती सुख्वार्षा शुक्ला के पली में ही 413 बच्चे तो तब थे जब स्कूल को जंगपुरा से सारे काले खान शिफ्ट हुए लगभग ३-4 वर्ष हो चुके थे और अधिकांश बच्चों ने पढाई से नाता तोड़ लिया था | यानि कुल मिलाकर कोई कुछ भी कहे, पर यदि ये आंकड़ा भी सही मन लिया जाये तो भी औसतन लगभग एक हज़ार बच्चे जंगपुरा के उस विद्यालय में अवश्य ही पढ़ते रहे होंगे |
  5. श्रीमती सुख वर्षा शुक्ला ने अपने उपरोक्त पत्र में ये भी साफ़ कर दिया था कि सारे काले खान के स्कूल में 6 कमरों में 413 बच्चे पढ़ते हैं पर ऐसा लगता है दिल्ली नगर निगम को इस बात से कुछ लेना देना नहीं था |


NEWS BROACST ON TOTAL TV - 19.10.2011

हैरत कि बात ये है कि RTI में दिल्ली नगर निगम शहरी छेत्र के शिक्षा उपनिदेशक ने एक महत्वपूर्ण खुलासा और भी किया - कि दिल्ली नगर निगम के शिक्षा संस्थानों पर जो भी कार्यवाही या आदेश उनका शिक्षा विभाग करता है उसके सन्दर्भ में खुद शिक्षा विभाग को ही जानकारी नहीं होती है | मसलन विद्यालय भवन शिक्षा विभाग का, विद्यालय चला रहा शिक्षा विभाग, पर कब विद्यालय को शिक्षा विभाग बंद कर देता है, कब विद्यालय भवन को किसी और को सौंप देता है इस बात कि जानकारी शिक्षा उपनिदेशक को नहीं है - क्या आपको लगता है ये मुमकिन है?


Monday, September 26, 2011

सरकारी अस्पतालों की बदहाली


JANPATH PART - I


JANPATH PART-II



JANPATH PART-III


JANPTH PART-IV


JANPATH PART-V

Friday, August 12, 2011

Wednesday, July 27, 2011

शिक्षा के अधिकार के हनन का नंगा नाच - देखिये दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय की घिनौनी करतूत - मासूम बच्चों को पढ़ाई से कर महरूम धकेला सडकों पर


(VIDEO - I)

दिल्ली के कालकाजी इलाके में एस के कान्वेंट स्कुल के मैनेजिंग कमेटी ने 18 अप्रैल 2011 को अचानक स्कुल के गेट पर ताला जड़ दिया| बच्चों को स्कुल के अन्दर घुसने से रोक दिया गया| 1988 में दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय द्वारा मान्यता प्राप्त ये स्कुल किसी भी हालत में शिक्षा निदेशालय की रजामंदी के बगैर इस स्कूल को बंद नहीं किया जा सकता है|

देश के भविष्य इन बच्चों के दाखिले का विकल्प तलाशते जब हम पहुंचे दक्षिणी दिल्ली के शिक्षा उपनिदेशक श्रीमती अनीता सेतिया के पास तब हमें पता चला की शिक्षा निदेशालय इस हकीकत से भली भांति परिचित है| बच्चे पिछले चार महीनों से सड़क पर हैं| इस बात की दिल्ली के शिक्षा निदेशालय के अधिकारियों के पेशानी पर रत्ती भर शिकन नहीं दिखी|

हैरत करनेवाली बात यह है कि बच्चों को बिन मागे ही स्कूल प्रबंधन ट्रान्सफर सर्टीफीकेट (TC) बच्चों के घर भेजता रहा वो भी प्रधानाध्यापिका के दस्तखत के बगैर, और हैरानी कि बात ये है कि दक्षिणी दिल्ली के शिक्षा उपनिदेशक के दफ्तर से शिक्षा अधिकारी द्वारा इनपर अपनी मुहर लगाकर उसे सत्यापित भी किया जा रहा है|


Sunday, July 24, 2011

RTI MOVED ON THE TRAGIC DEATH OF THE MINOR INNOCENT BOY IN KHAMMAM, ANDHRA PRADESH DUE TO NON AVAILABILITY OF ANTI RABBIES VACCINE

THE TRAGIC DEATH OF THE MINOR & INNOCENT BOY IN KHAMMAM, ANDHRA PRADESH HAS LEFT ME WITH TERRIBLE SHOCK & PAIN TO THE EXTENT THAT (BELIEVE ME) I HAD SLEEPLESS NIGHTS EVER SINCE I WATCHED THE SCENES AT INDIA TV ON 31ST MAY 2011 AT 15:50 HRS [03:50PM]

Is it the same old Bharat eve now?
Are the people pedigree of the
same old golden Bharatiya families -
where one would give his life to save the other life?
Are the people in India now heartless?
Has the life today become valueless or penniless?

Have the people of this country
really become so selfish that
they are not pained and ashamed at
such intentional and deliberate painful acts?

I am really really pained to have watched such a news at India TV. I feel that the Government of Andhra Pradesh is certainly answerable to the people of India for such pathetic, painful and cowardly act that has occurred in the state of Andhra Pradesh. Hence, I, DN Srivastava cannot resist myself from seeking certain valuable information from the Government of AP.

I have therefore filed an RTI application addressed to the Special Chief Secretary, Ministry of Health and expect a true and factual information on my application. I also expect the government officials would discharge their sincerely and honestly as this involves life of several other innocent and minor children in the country and we are sincere then only we can provide safety and protection against certain deadly health hazards that ultimately end-up in ending innumerous lives. We, together can work in the direction of providing better services and can also ensure the rights of the common reach them exactly.

I am really grateful that India TV has brought to the notice of every people of this country. I also expect whole-hearted support from them in the future also.

The scanned copy of the application filed under Right to Information Act,2005
is given below for your reference and consideration please:



Monday, July 18, 2011

दिल्ली नगर निगम के अफसरों को करें खुश और हो जाएँ मालामाल

दिल्ली नगर निगम

भ्रष्टाचार का एक बड़ा खुलासा

अफसरों को करें खुश
और हो जाएँ मालामाल

यदि आपकी पहुँच अच्छी है,
यदि आपकी उठ-बैठ बड़े-बड़े लोगों के साथ है

तो निगम के लोग

आपकी तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखेंगे

आइये, खुद अपनी नज़रों से ही देख लीजिये

निगम की करतूत

आज आये दिन सुनने और देखने को मिलता है
उस गरीब के बने बनाये माकन को निगम के अफसरों ने बड़ी बेरहमी से तोड़ दिया
जो गरीब दिन भर की गाढ़ी कमाई से एक एक रुपया जोड़ जोड़ कर
अपने मकान की नींव रखा था
आज निगम ने उसे पूरा बनते ही बड़ी बेरहमी से तोड़ दिया

जो अपने ही घर में कोई छोटा मोटा घरेलु उद्योग लगाकर
अपना और अपने बच्छों का लालन पालन कर रहा था
उसके छोटे से मकान को निगम ने सील कर दिया.

ऐसे तो असंख्य उदहारण आपके पास स्वयं भी होंगे

पर आइये आज हम आपको दिखाते हैं कैसे एक ऊंची पहुँच वाला

भवन नियमों के सभी उल्लंघन करके भी

दिल्ली नगर निगम की नज़रों में आता ही नहीं है

ये है

उन में से (मकान न. B-48 , N-25, N-26 साऊथ एक्सटेंशन पार्ट-1, नई दिल्ली - 110049)
एक मकान का दृश्य जहाँ व्यावसायिक गतिविधियाँ
जोरों शोरों से और खुलेआम चलायी जा रही हैअनगिनत कानूनी उलंघन - सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण,
अवैध भवन निर्माण, रिहायशी मकान - फिर भी व्यावसायिक गतिविधियाँ /
व्यावसायिक कारोबार पूरे जोर शोर से जारी

सवाल बड़ा येही है

क्यों आखिर इन भवनों पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जा रही?

सूचना के अधिकार (Right to Information Act, 2005)
के तहत मांगी गयी जानकारी में जो
दिल्ली नगर निगम ने सूचित किया, उसे सिर्फ ध्यान से देखिये
आप स्वयं सब कुछ समझ जायेंगे

Please take a look at the following Government documents which may stun you

एम्० सी० डी० द्वारा जारी वह दस्तावेज़ जिसमे एम्० सी० डी० ने खुद माना कि
भवन संख्या B-48 एन० डी० एस० ई० पार्ट वन जो रिहाइश के लिए है उसमे
वर्ष 2001 से ही व्यावसायिक कारोबार चलाया जा रहा है

Look at the above document dated 20.06.2002 signed by
Shri Jagdish Sagar, the then Chairman, Delhi Vidyut Board

Delhi Vidyut Board had already penalized and burdened the property owner
with commercial tariff and penal charges as per rules.

Even Delhi Jal Board levied Commercial tariff on the property

But to hell with all !!!! the Building Department of MCD Central Zone
took no action even on such glaring deviations

In fact, why would they? ... is the only simple question which comes to every ones mind, and I hope each one of us understands this also.

These building owners have a pretty high profile - may be money, may be power, may be both, and hence MCD ignores initiating any action on these buildings.

In the instant case.
With the passage of time the said houses were rented out to different tenents who had been using the said building for commercial use but MCD, Central Zone, Building Department initiated no action on even such glaring deviations and violations of the MCD Building bye-laws


The above document speaks clearly that MCD Building Department
never ever had any intentions to agree to any such misuse of the said property.

Matter of prime importance is, despite the MCD area Inspectors report above which clearly says that the building was rented for office use, the admission of MCD officials themselves at several above documents that the building was being miused since 2001 & before (the report of the Area Inspector of MCD came in 2001), MCD was not initiating any action on the said buildings. Glaringly, this was an intentional and a deliberate act and move
on part of the MCD building department of Central Zone - reasons best known to them


It took several years for MCD, Central Zone, Building Deptt. to admit misuse in the said building. They agree that the said building was being misused - used for Paying Guest Accommodation. May have been advised by MCD to change the trade.

(Kindly look at the document below)

The building was being used as a paying guest accommodation even today

but surprisingly,
still MCD did not want to take any action

[look at the documents below]

MCD, Central Zone, Building Department agrees that
NO PERMISSION WAS EVER GRANTED
for running the Paying Guest Accommodation in the said building
and that, even then No action / prosecution was done
by the Building Department on the said property

[look at the documents below]
Use of Paying Guest Accommodation was
not mentioned in the Master Plan MPD 2021

Stull no action

[look at the documents below]
A formal complaint was lodged with the Building department
and also with the Dy. Commisioner, Central Zone, MCD asking them to explain reasons into why action was not being initiated in this case

[kindly see the reply of MCD, Building Department, Central Zone filed abovewhich says,
No action has been taken on your complaint dated 1.11.2008]

When everything failed
an RTI was filed to know whether any action was initiated at all on the property for the said violations of building bye-laws and despite Notice issued to the property in question through the Local Commissioner apointed by Hon'ble Delhi High Court.

[look at the document below]


Building Department, Central Zone, MCD issued notice to the said property owner on the directions of the Hon'ble Delhi High Court who appointed a local commissioner for carrying out a survey to assess the deviations and violations of building bye-laws
in a PIL matter (Writ Petition No.4369/2001). The survey report says:
1. there were infringement in set-backs
2. the portion of the building is being used for commercial purpose

still no action .......


Thanks to MCD, Central Zone, Building Department

Finally it agrees that the

Building No.B-48 NDSE-1 was booked for action

[look at the document below]
The said building was booked on 12.06.2002
for Action U/s 344 (1) and 343 on account of unauthorized construction,
but still no action on misuse
No fine imposed
No sealing orders
No Demolition actions
till date

[Look at the document above]
It says "Despite several attempts, demolition action could not be taken
due to non-availability of Police Force on all occasions."

Friends, Does it not smell fishy ???

When asked, How many times did MCD apply for Police Force

Look at the reply MCD below:


When asked, How many times was the Police Force refused?

See what MCD, Building Department, Central Zone has to say in their pleadings

[Look at the document below]


Look at the silly reply of MCD

Out of 72 requests for Police Force for the same area

only two requests were refused

meaning thereby, 70 times Police Force were made available

for demolition and sealing actions

But Still No action

Remember other properties, in huge numbers were sealed
and demolished in same area and in Delhi that belonged to common man

The matter was given to Chief Vigilance Commissioner for conducting a vigilance enquiry which you would be surprised to note that it has been kicked like a foot-ball and for the last several years is being kicked from one department to the other -
Net result - Zero
[Look at the letter sent by the Central Vigilance Commission to Vigilance deptt. MCD]

It says "No action taken report is required by CVC"
take action or not is your wish.
letter of enquiry sent indirectly to the wrong-doer
to investigate his own deeds

Ha! Ha!! Ha!!! Ha!!! Ha!!!

[Look at the document below]
A letter for taking action sent from MCD Vigilance deptt.
to Dy. Commissioner, MCD, Central Zone

This also may surprise U
  1. Complaint regarding Property No. B-48 NDSE-1, New Delhi-110049 was sent from Central Vigilance Commission to MCD Vigilance department for action vide their diary No. 349/2010-77861 dated 08.03.2010
  2. Vigilance department further forwarded the same complaint to the Dy. Commissioner, MCD, Central Zone, on 03.05.2010 vide their diary No. AD-II/Vig/SK/2010/2681 [after a delay of 2 months]
[Look at the document below]

Being kicked like a football from one deptt. to the other
although MCD admits that the letters have been received by them regularly but
Still No action
Why? is the only Big question which remains unanswered yet.

दोस्तों, मैं यहाँ पर बहुत साफ़ कर देना चाहता हूँ कि दोषी मकान वाले नहीं हैं| मेरी नज़रों में दोषी दिल्ली नगर निगम के वह अफसर और कर्मचारी हैं जिन्हों ने किसी न किसी बहाने पिछले लगभग पच्चीस सालों से हर तरह कि कार्यवाही ताल राखी है| इस कारण अब मेरा मकसद सिर्फ और सिर्फ उन दोषी अफसरों को ढून्ढ निकालना है जिन्होंने
बगैर किसी निजी स्वार्थ के तो ऐसा नहीं किया होगा|

आखिर दिल्ली नगर निगम में अफसर और कर्मचारी बैठे क्यों हैं? क्या इनका काम सिर्फ और सिर्फ अपने निजी स्वार्थ के पीछे कोई भी गैर कानूनी काम करते रहना है?

येही वह सवाल हैं जो अब तक सवाल ही बने रह गए हैं|