आम आदमी का अस्तित्व
डी एन श्रीवास्तव
संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष
अस्तित्व
आज आम आदमी का न तो कोई वजूद है, न कोई कीमत और इसी लिए आम आदमी कारण कोई पहचान है ही नहीं. इसी कारन आम आदमी का अस्तित्व बहुत तेजी के साथ धूमिल पड़ता जा रहा है. यदि अब भी हम नहीं चेते, नहीं जागे, नहीं समझे तो वो समय ज्यादा दूर नहीं जब हमारा अस्तित्व मिट्टी में मिलकर नष्ट हो जायेगा.
आम आदमी आज केवल कीड़े मकोड़ों की तरह रह गया है. जिस प्रकार सड़क पर चल रहे आदमी के पैरों के नीचे कितने ही कीड़े पिचकर दबकर मर जाते हैं कभी किसीने इस बात की सुध नहीं ली. ठीक उसी प्रकार आम आदमी भी नित्य प्रतिदिन किसी न किसी कारणवश अपनी जान गवां रहा है, चाहे उसका कत्ल हो रहा हो, या किसी घातक बीमारी की इलाज के अभाव में या फिर भूखमरी के कारण.
कारण चाहे कुछ भी हो पर कौन सुध ले रहा है आज आम आदमी के दर्द की?
आम आदमी की तुलना कीड़े से? ये बात हमें भी हज़म नहीं हुई. परन्तु हमने हार नहीं मानी. गहन चिंतन मनन करने पर लगा कि बात में दम है. अब आप भी यदि इस बात पर गौर करें तो पाएंगे कि यह कहना कि आम आदमी आज महज़ कीड़े मकोड़ों की तरह रह गया है ये बात अक्षरशः सत्य है.
तिलचट्टा - जिसे हम कोकरोच के नाम से भी जानते हैं, उसकी जिंदगी कितनी दैनीय है. गटर की सडांध में उसे रहना पड़ता है , सडांध ही खाना पड़ता है, सडांध में ही सारी जिंदगी बितानी पड़ती है. कहते हैं की जब इश्वर तिलचट्टे की उत्पत्ति कर रहा था तब एक काल्पनिक संवाद जो इश्वर और तिलचट्टे के बीच हुई उसपर ज़रा ध्यान दें :
इश्वर: बेटा तिलचट्टे, पैदा तो मैं तुझे कर रहा हूँ पर एक बात समझ ले. तुझे जीने का अधिकार नहीं है.
तिलचट्टा: भगवन, जब जीने का हक़ ही नहीं है तो पैदा ही क्यूँ करते हो?
इश्वर: पैदा तो करना ही होगा, ऐसा विदित है. और तुझे गटर की सडांध में रहना पड़ेगा, सडांध ही खाना पडेगा, सडांध में ही सारी जिंदगी बितानी पड़ेगी.
तिलचट्टा: भगवन, यदि ऐसी बात है तो हमें पैदा करके फ़ौरन मृत्यु को प्राप्त करा दो ताकि
हमें ऐसी दर्दनाक ज़िन्दगी न जीनी पड़े.
इश्वर: एक मजबूरी और भी है कि मरने तुझे दिया नहीं जायेगा.
तिलचट्टा : तो फिर आप ही बताएं कि हम कैसे अपनी जिंदगी बिताएं.
इश्वर: ऐसी ज़िन्दगी जीने के लिए सहनशीलता की अधिकता होनी चाहिए. और सहनशील बनाने के लिए ज़रूरी है कि खून में गर्मी न हो. और खून की गर्मी हटाने के लिए ज़रूरी है खून का रंग लाल न हो. इस कारण मैं तुम्हारे खून का रंग सफ़ेद कर देता हूँ. इससे तुम्हें दो फायदे होंगे. एक - तुम में ज़रुरत से अधिक सहनशीलता आएगी और दूसरा - तुम्हारी मृत्यु जबतक पैरों तले कुचलकर न मारा जाये तबतक नहीं होगी.
तबसे तिलचट्टा एक अत्यंत सहनशील कीड़े माना जाता रहा है. और आसानी से उसकी मृत्यु नहीं होती है.
आज ठीक ऐसी ही ज़िन्दगी आम आदमी की हो गयी है. सडांध में रहना पड़ता है, सडांध ही खाना पड़ता है, सडांध में ही सारी जिंदगी बितानी पड़ती है आम आदमी को. आम आदमी को न तो जीने का हक़ है और न ही उसे मरने दिया जाता है. भूख से बेहाल तडफता आम आदमी जब खुदकुशी करने चलता है तो फ़ौरन कानून के पंजे उसे धर दबोचते हैं और वो आदमी खुदकुशी करने की कोशिश के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया जाता है. अब इस विडम्बना को देखिये. भूख मिटाने को रोटी मांगने पर पुलिस उससे कहती है की रोटी देने का अधिकार उसके पास नहीं है.पर मरने की कोशिश करने पर उसे रोकना कानून है बेशक यह कोशिश भूखमरी के कारणों से ही क्यूँ न हो.
ठीक कीड़े मकोड़ों की तरह ही आम आदमी की सुनने वाला भी कोई नहीं है.
hamare elake me to astitva nahi hai.narayan narayan
ReplyDeletethanks for the support.
Deletenow i hava my own news channel launched for the common men of bharat.
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thanks.
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