Friday, October 2, 2009



अस्तित्व रक्षा हेतु


हक़ और न्याय के ज़ंग की शुरुआत


आज देश में आम आदमी की लड़ाई राजनीती से नहीं है , लडाई सरकारों की नहीं , अच्छे बुरे नेता की भी नहीं है . लडाई पार्टियों की नहीं , लड़ाई सत्ता की नहीं और न ही लडाई कुर्सी की है . सही मायने में आज लडाई तो है हक़ और न्याय को हासिल करने की . आज लडाई है अशिक्षितों को शिक्षित बनाने की . लडाई है अन्याय से . लडाई है आम आदमी को गुमराही से बचाने की . लडाई है रोटी और कपडे की , आम आदमी के लिए एक छत की . लडाई है आर्थिक आज़ादी की . लडाई है समाज में बढ़ते अराजकता से , समाज में फैले भ्रष्टाचार से , समाज में पंख फैलाते उस द्वेष से जहाँ इंसान अपने ही खून का प्यासा हो रहा है . लडाई है उस आतंकवाद से जिसने असंख्य माताओं के की गोअद सूनी कर डालीं , असंख्य अबलाओं को विधवा बना दिया , असंख्य बच्चों को अनाथ बना दिया पर हमारे तथाकथित नेता सिर्फ एक दुसरे नेताओं के मत्थे दोष मढ़कर अपना पल्ला झाड़ कर रह गए.

ज़रा सोचिये , क्या एक पार्टी दुसरे पार्टी को दोषी ठहराकर आम आदमी को वो सब दे सकती है जो उससे छिनता जा रहा है ? कदापि नहीं .


वास्तव में एक नेता जो कुर्सी पर बैठ चूका है उसे न तो किसी प्रकार की असुविधा ही है और न ही कोई परेशानी. उनकी तो हर ज़रुरत, चाहे वो छोटी हो या बड़ी पल भर में पूरी हो जाती है बेशक वो उसके हक़ के अतिरिक्त ही क्यों न हो. वहीँ अपने हक़ की भीख मांगता रह जाता है आम आदमी और अपने हक़ से भी महरूम रह जाता है.

क्या आपने कभी सोचा है की ऐसा आखिर क्यों होता है? इसका मूल कारन आम आदमी ही है.


अनंत काल से इस देश का विभाजन होता चला आ रहा है. कभी धर्म और मज़हब के नाम पर तो कभी जाती के नाम पर. कभी बिरादरी के नाम पर. फिर कभी अमीर गरीब के नाम पर, तो कभी ऊंच नीच के नाम पर कभी भाषा तो कभी प्रान्त के नाम पर. पर देश का सबसे बड़ा विभाजन जो मुझे लगता है वो हुआ पहचान के नाम पर. हमारा देश दो बड़े हिस्सों में बाँट गया. एक वो वर्ग बना जिनकी अपनी एक पहचान थी अपना एक वजूद था, अपनी कोई अहमियत थी और दूसरा वो वर्ग बना जिसकी कोई पहचान थी ही नहीं और न ही उनकी कोई अहमियत ही थी. इस आम आदमी का कोई वजूद था ही नहीं. आप स्वयं देखें और समझने की कोशिश करें. क्या आपको ऐसा नहीं लगता है की आज हमारे देश में जिस वर्ग की पहचान है उस वर्ग के लोगों को हम नेता कह सकते हैं. वहीँ आम आदमी की कोई पहचान नहीं ही. उसका कोई वजूद नहीं है. उसकी कोई अहमियत नहीं है. कहने का मकसद ये है की आम आदमी का कोई आज कोई अस्तित्व नहीं है.


3 comments:

  1. बहुत हीं सुन्दर आलेख । स्वागत है ।


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    गुलमोहर का फूल

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    1. thanks for the support.
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      thanks.

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